Tuesday, 17 January 2012

biography or orangaeb

Abul Muzaffar Muhy-ud-Din Muhammad Aurangzeb Alamgir (Urdu: ابلمظفر- محىالدين - محمد اورنگزيب- عالمگیر, Hindi: अबुल मुज़फ्फर मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर) (4 November 1618 [O.S. 25 October] – 3 March 1707 [O.S. 20 February]), more commonly known as Aurangzeb (Hindi: औरंगज़ेब)[1] or by his chosen imperial title Alamgir (Hindi: आलमगीर) ("Conquerer of the World", Urdu: عالمگیر), was the sixth Mughal Emperor of India, whose reign lasted from 1658 until his death in 1707.[2][3]
Aurangzeb, whose rule lasted for nearly half a century, was the second longest reigning Mughal emperor after Akbar. During his reign the Mughal Empire reached its zenith with its territories encompassing over 1.25 million square miles and with more than 150 million subjects, nearly 1/4th of the world's population at that time.[4][5] But after his death in 1707, the Mughal Empire gradually began to shrink. Major reasons include a weak chain of "Later Mughals", an inadequate focus on maintaining central administration leading to governors forming their own empires, a gradual depletion of the fortunes amassed by his predecessors and the growth of secessionist sentiments among the various communities within the Mughal Empire.
Aurangzeb's communal policies are mixed. On one hand he authorized the Fatawa-e-Alamgiri[further explanation needed] over the entire empire, briefly taxed non-Muslims,[6] destroyed many Hindu temples which were accused of syncretism and executed Guru Tegh Bahadur.[7][8][9] On the other hand, he increased the number of Hindu administrators and senior court officials (such as Raja Jai Singh and Swarup Singh of Orchha) and many Hindu and Sikh temples continued to expand during his reign.[10]
मुग़ल प्रथाओं के अनुसार, शाहजहाँ ने 1634 में शहज़ादा औरंगज़ेब को दक्कन का सूबेदार नियुक्त किया । औरंगज़ेब किरकी (महाराष्ट्र) को गया जिसका नाम बदलकर उनसे औरंगाबाद कर दिया । 1637 में उसने रबिया दुर्रानी से शादी की । इधर शाहजहाँ मुग़ल दरबार का कामकाज अपने बेटे दारा शिकोह को सौंपने लगा । 1644 में औरंगज़ेब की बहन एक दुर्घटना में जलकर मर गई । औरंगज़ेब इस घटना के तीन हफ्ते बाद आगरा आया जिससे उसके पिता और शाह शाहजहाँ को क्रोध आया । उसने औरंगज़ेब को दक्कन के सूबेदार के ओहदे से बर्ख़ास्त कर दिया । औरंगज़ेब 7 महीनों तक दरबार नहीं आ सका । बाद में शाहजहाँ ने उसे गुजरात का सूबेदार बनाया । औरंगज़ेब ने सुचारू रूप से शासन किया और उसे इसका सिला भी मिला - उसे बदख़्शान (उत्तरी अफ़गानिस्तान) और बाल्ख़ (अफ़गान-उज़्बेक) क्षेत्र का सूबेदार बना दिया गया ।

इसके बाद उसे मुल्तान और सिंध का भी गवर्नर बनाया गया । इस दौरान वो फ़ारस के सफ़वियों से कंधार पर नियंत्रण के लिए लड़ता रहा पर उसे हार के अलावा और कुछ मिला तो वो था - अपने पिता की उपेक्षा । 1652 में उसे दक्कन का सूबेदार फ़िर से बनाया गया । उसने गोलकोंडा और बीजापुर के खिलाफ़ लड़ाइयाँ की और निर्णायक क्षण पर शाहजहाँ ने सेना वापस बुला ली । इससे औरंगज़ेब को बहुत ठेस पहुँची क्योंकि शाहजहाँ ऐसा उसके भाई दारा शिकोह के कहने पर कर रहा था ।

सत्तासंघर्ष

सन् 1652 में शाहजहा बीमार पड़ा और ऐसा लगने लगा कि शाहजहाँ की मौत आ जाएगी । दारा शिकोह, शाह सुजा और औरंगज़ेब में सत्ता संघर्ष चलने लगा । शाह सुज़ा, जिसने अपने को बंगाल का गवर्नर घोषित करवाया था को हारकर बर्मा के अराकान क्षेत्र जाना पड़ा और 1659 में औरंगज़ेब ने शाहजहाँ को कैद करने के बाद अपना राज्याभिषेख करवाया । दारा शिकोह को फाँसी दे दी गई । ऐसा कहा जाता है कि शाहजहाँ को मारने के लिए औरंगज़ेब ने दो बार ज़हर भिजवाया । पर जिन हकीमों से उसने ज़हर भिजवाया था वो शाहजहाँ के वफ़ादार थे और शाहजहाँ के विष देने के बज़ाय वे खुद ज़हर पी गए । Bold text

शासक औरंगज़ेब

मुग़ल, खासकर अकबर के बाद से, गैर-मुस्लिमों पर उदार रहे थे लेकिन औरंगज़ेब उनके ठीक उलट था। औरंगज़ेब ने जज़िया कर फिर से आरंभ करवाया, जिसे अक़बर ने खत्म कर दिया था। उसने कश्मीरी ब्राह्मणों को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर किया। कश्मीरी ब्राह्मणों ने सिक्खों के नौवें गुरु तेगबहादुर से मदद मांगी। तेगबहादुर ने इसका विरोध किया तो औरंगज़ेब ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। इस दिन को सिक्ख आज भी अपने त्यौहारों में याद करते हैं।

[संपादित करें] साम्राज्य विस्तार

औरंगज़ेब के शासनभर युद्ध-विद्रोह-दमन-चढ़ाई इत्यादि का तांता लगा रहा । पश्चिम में सिक्खों की संख्या और शक्ति में बढ़ोत्तरी हो रही थी । दक्षिण में बीजापुर और गोलकुंडा को अंततः उसने हरा अनिरुद्ध ने मारा था या पर इस बीच शिवाजी की मराठा सेना ने उनको नाक में दम कर दिया । शिवाजी को औरंगज़ेब ने गिरफ़्तार कर तो लिया पर शिवाजी और सम्भाजी के भाग निकलने पर उसके लिए शदीद फ़िक्र का सबब बन गया । आखिर शिवाजी महाराजा ने औरंगजेब को हराया और भारत में मराठो ने पुरे देश में अपनी ताकत बढाई शिवाजी की मृत्यु के बाद भी मराठों ने औरंग़जेब को परेशान किया।





इस बीच हिन्दुओं को इस्लाम में परिवर्तित करने की नीति के कारण राजपूत उसके ख़िलाफ़ हो गए थे और उसके 1707 में मरने के तुरंत बाद उन्होंने विद्रोह कर दिया ।

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